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23 Dec 2016 · 1 min read

उनके खिलाफ होना भी, मंज़ूर है हमें

वो सोचते हैं,
हम उनके साथ नहीं,
उनके सामने, उनके खिलाफ,
क्यों खड़े होते हैं?

उन्हें नहीं पता,
खिलाफ होने से ही,
उनका सामना होता है,
आँखों में आँखें डालनी पड़ती हैं,
उनकी नज़रों में डूबने के लिए,
उनके खिलाफ होना भी,
मंज़ूर है हमें।

फिर वो भी तो,
घूरकर देखते हैं हमें,
उनकी उस नज़र के लिए,
थोड़ी तकलीफ भी हम,
दे सकते हैं उन्हें।

बेशक उस तकलीफ से,
दिल हमारा भी,
बुरी तरह छिलता है,
पर उनके नूर का नज़ारा,
वो भी तो हमीं को मिलता है।

हाँ बेशक उनकी नज़रों के,
हर वार से हम घायल होते हैं,
पर फिर भी बेकरारी से,
अगले वार के इंतज़ार में होते हैं।

कुछ इस तरह से अंजाम तक,
हमारा भी अफ़साना अब आ जाए,
उनकी नज़रों के बाणों से तड़पकर,
अब दम भी हमारा निकल जाए,
उनके भी दिल को जीत का सुकून आए,
और हमारी भी रूह को करार आए।

————-शैंकी भाटिया
अक्टूबर 15, 2016

Language: Hindi
192 Views
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