उनकी नेहा के रंग
उनकी नेहा के रंग, हमारे चेहरे पर दिखने लगे,
मुद्दत बाद हमारे नज़रे-दीदार किसी नज़ारे पर टिकने लगे।
उनकी बातों का कुछ ऐसा सुरूर हम पर छाया,
कि हम अपने लफ्जों में भी उनका एहसास रखने लगे।
उनकी मुस्कान की चमक ही कुछ ऐसी लगी,
कि अब तो हम बिन मोल ही बिकने लगे।
एहसासों का कभी किसी के ख्याल रहा नहीं हमें,
और अब गहराइयों तक जज़्बात सीखने लगे।
कभी अपने विचारों को बयाँ तक नहीं कर सके,
अब एहसास बयाँ करते अलफ़ाज़ लिखने लगे।
उनकी नूपुर की झंकार पड़ी जो कानों में,
इन्द्रधनुषी रंगों से भरे सब जहाँ दिखने लगे।
————शैंकी भाटिया
12 जुलाई, 2016