उनकी गलियों से जब गुज़र जायें
उनकी गलियों से जब गुज़र जायें
आँसुओं से ये नैन भर जाये
ये ही उम्मीद आप से रहती
कुछ ख़ुशी दिल में आप भर जायें
इश्क़ सुनते हैं आग का दरिया
आओ मिलकर के पार कर जायें
बेख़ुदी है कि अपने साये से
दफ़अतन ही न आज डर जायें
की हैं गुस्ताख़ियाँ मुहब्बत में
करके बैठे हैं क्यूँ मुकर जायें
दो न हमको ग़मों की दौलत ये
टूटकर हम न फिर बिखर जायें
एक मौक़ा दिया है कुदरत ने
क्यूँ न मानिन्दे-गुल सँवर जायें
आँधियों ने चमन उजाड़ दिया
गुल जो टूटे हैं वो किधर जायें
आपको गर उन्हे मनाना है
क्यूँ न ‘आनन्द’ उनके घर जायें
– डॉ आनन्द किशोर