उधारी
बडी झिझक के साथ वो परचून की दुकान के बाहर खडा देख रहा था। एक ग्राहक सामान लेके निकला तो वो एक कदम आगे बडा। दूसरा कदम उठाने मे फिर देर लगी तो एक और ग्राहक तेजी से आया और दो सामान ले फूर्ती से निकल गया। आखिर दुकानदार ने ही उसे आवाज लगा पूछा, ” क्या चाहिए? ” “सौ ग्राम मूंग की दाल और सौ ग्राम सरसों का तेल। ” धीमी आवाज मे उसने कहा। झटपट सौदा तैयार हो गया तो वो फिर धीमी आवाज मे बोला ” मेरे पास सौ रूपए है पर क्या मै इसके पैसे दो दिन बाद दे सकता हूं ?” ” क्या करते हो भीमा भाई, पहले से ही पांच सौ उधारी चढ़ी है। अब और उधार?” वो चुपचाप खडा रहा, कुछ ना बोला। कुछ देर मे दुकानदार तेज आवाज मे गरजते हुए बोला , ” आखिरी बार दे रहा हूँ, अगली बार नही दूंगा। साथ मे हल्दी और नमक भी रख देता हूं। पूरे सौ रूपए हो जाएगे। अब छह सौ की उधारी हो गई। जल्दी चुका देना। भीमा भारी मन और गीली आंख लिए अपना सामान उठा के चल दिया। जाते हुए मन ही मन विचार कर रहा था कि यह कडक व्यवहार और उदार दिल वाले दुकानदार से उसका परिचय नही हुआ होता तो उसे कई राते भूखे पेट गुजारनी पड सकती थी। घर से दूर इस शहर मे मजदूरी कर पैसा कमाना शुरू करने के बाद पिछले एक साल मे दसियो बार इस दुकानदार ने उसे मां की याद दिलाई थी जो उसे कभी भूखा नही सोने देती थी।
संदीप पांडे “शिष्य”, अजमेर