उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्यानि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्यानि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।। अर्थात जिस प्रकार सोते हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते, उसी प्रकार केवल इच्छा करने से सफलता प्राप्त नहीं होती। अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है…🙏🏃🏻चिरनिंद्रा से जागो। देश की खुली हवा मे जीना है तो घरो की चारदिवारी से बाहर निकलकर अपने अधिकार के लिए लड़ने के लिए तैयार रहे। अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च। अर्थात – अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, परंतु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना भी धर्म है। प्रणाम, नमस्कार, वंदेमातरम् … भारत माता की जय 🚭‼️