उद्भावना
उद्भावना की कलम से अंतस् की तार को छेड़ा
प्रेमसागर के अंतर्मन में चेतना ने लिया जब फेरा
चित्तकुंज में मिला उसे प्रीति का बसेरा
मनभावन की मधुबेला में डाला उसने डेरा
देख प्रकृति का नवयौवन, खिल उठा मोह का सवेरा
नभ में छाई जब घनघोर घटा, सौंदर्य से चितवन दिखे घिरा
सोंधी सोंधी ख़ुशबू से हर्षित पुलकित हुई धरा
उपवन में दिखे हलचल, नदियों की धारा करे कलकल
फूलों ने बिखेरी अपनी महक की समाँ, हरे-भरे कुदरत लगे
देख दृश्य चारु चंद्र मुस्काई
ऋतु ने ली अंगड़ाई
पवन बसन्ती रुख़ अपनाई
चहु ओर मौसम में ख़ुमारी छाई
सृष्टि की बात अभिसिंचीत हो पाई।।
प्रस्तुति:
पवन ठाकुर ” बमबम”
गुरुग्राम