उद्गार
दो अनजाने अजनबी
स्वप्न बडे मन के धनी
आये मुझे वो बोलकर
मिले मुझसे दिल खोलकर।
इनसे कौन सा रिश्ता था
जो इनसे मन मिलता था
आज मुझे आभास हुआ
ये पूर्व जन्म का रिश्ता था।
एक दिन ये मिलने आये
आते ही दिल पे छाये
मन में मीठा उमंग जगाकर
ये हृदय को अति भाये ।
इनकी अपनत्व भरी बाते
आज हमें है तोड रही
ना जाने कब आवेंगे वो
सोच यही झंझोड रही।
मिलना विछडना रीत है
यह जीवन संगीत है
पा कर खोना , खोकर पाना
मधुरता भरी यह टीस है ।
ना जाने कब आवेंगे
भैया कह हमें बुलावेंगे
सुने मन के उपवन में कब
रिश्तों का पुष्प खिलावेंगे।
……
©®पंडित सचिन शुक्ल