उदास सी क्यों है
किसी अनजानी सी आहट की
तलाश सी क्यों है
मेरे घर की ओर जाने वाली गली
उदास सी क्यों है
हुए रुसवा
दूरियाँ बढ़ती रही
बिछड़ कर मुझसे
वो अब भी मेरे पास सी क्यों है
पी गया एक-एक बूँद
मैं समुन्दर की
आत्मा के लबों पे फिर
भटकती प्यास सी क्यों है
सांस चलती है धड़कता है दिल
जिस्म ठंडा है क्यों
वो चलती-फिरती लाश सी क्यों है
सारी खुशिया खुदा ने डाली
उसके दामन में
बैठी गुमसुम सी अकेले में
वो निराश सी क्यों है
जेठ की दुपहरी सी तपती
वीरान है वो
मगर आँखों में छुपाये हुए
मधुमास सी क्यों है
मैंने भूगोल समझा और
पढ़ लिया उसको
हुई रहस्यमयी आज वो
इतिहास सी क्यों है
कल तक तो खिलखिलाई
खूब हंसी बचपन में
ज़िंदगी आज मगर लगती
कारावास सी क्यों है