*उदास आये *
पत्थर उठाके फेंके ,लौटे तो उदास आये ।
सियासत के प्यारे को ,उन्माद रास आये ।।
जब भी पूंछो तो यार ,मजबूरी ही बतावे है
तिजारत का तजुर्वेकार है क्योँ पास आये ।।
कहता है यह तो मेरी,रोजी रोटी का सवाल
इनसे दूर रहके तो मेरा,सत्यानाश हो जाए।।
नाम के ही तो ये संग हैं ,पर काम के कितने
छल दम्भ पाखण्ड झूँठ सब ,ख़ास गुन पाये।।
एक गुण और है ,क़ि ये कभी पिघलते नहीं
तुझे घुलना है तव तू चाहे,सौ बार घुल जाए।।
पाल’साहब’हमने पत्थर को,समझाया बहुत
ना जाने इन ढेरों में ,उसे क्या क्या नज़र आये।।