उदासी की चादर
उदासी की चादर हटा दो मेरे मन से ।
अब मैं जीना चाहती हूं खुलके सुख से ।
नहीं रह सकती इस तरह कैद होकर ।
उदासी की चादर हटा दो मेरे मन से।
दुनिया में कुछ ऐसा करना चाहती हूं मैं।
जो दुनिया नाज़ करें मेरे इस हुनर पर ।
सितम अब और कोई में सही नहीं सकती ।
उदासी की चादर हटा दो मेरे मन से।
चार दीवारी के भीतर अब मैं कैसे रहूं।
इतने ज़ुल्म ज़माने के अब मैं कैसे सहूं।
जिंदगी खुल कर जीने का एहसास होगा ।
उदासी की चादर हटा दो मेरे मन से।
उजाले के दीपक मेरे इस मन में जलने दो ।
इस लील गगन में आगे बढ़ने तो दो ।
अपने इस देश में इतिहास बनाने दो ।
उदासी की चादर हटा दो मेरे मन से।
Phool gufran