उत्पादन धर्म का
उत्पादन धर्म का
——————–
अच्छाईयों से नहीं
इच्छाओं से उत्पन्न हुआ है धर्म।
धर्म की इच्छाओं में शामिल हुआ है
युद्ध,प्रहार,विजय,विनय-भंग।
और पराजितों पर उच्छृँखल शासन का
अनिवार्य अंग।
सिद्धान्तों से नहीं उद्भ्रांतों से
परिभाषित होता आया है धर्म।
इन परिभाषाओं में तत्पर रहा है
स्वार्थ,शोषण,बाजारवाद।
प्रजावाद से अलग राजतंत्रवाद।
प्रभुताई और पंडिताई से
ओतप्रोत रहता रहा है धर्म।
व्याख्या प्रभु की पुरोहितों की शब्दावली में।
अतार्किक तथ्य तथा भग्न भजन।
स्वर्ग और सुख का प्रलोभन।
कर्मवादी नहीं भाग्यवादी है धर्म।
कर्म में कारण नहीं खुद को
उपस्थित करता है धर्म।
हत्याओं को धर्मयुद्ध बतानेवाला, धर्म।
हर धर्म का यही है निरर्थक कर्म।
देवस्थानों से उतर आये धर्म।
जीवन पद्धति में घुल जाये धर्म।
हर धर्म जान ले अपना सारा मर्म।
धर्म द्वारा मानव न जन्मे
जन्मे मानव के लिए धर्म।
————————————–30-9-24