“उत्पन्न कैसी बिमारी है”
एक प्रश्न चिह्न खड़ा किया तू,
जीने का ढंग तलाश रहा युग,
आज विश्व पर पड़ता भारी है,
ये विनाशकारी महामारी है।
उत्पन्न कैसी बिमारी है?
मन में भय, संशय पल रहें,
खल रही आपस की दूरियां ,
प्रताड़ित करते तन-मन को,
जन-जन की लाचारी है।
उत्पन्न कैसी बिमारी हैं?
बना महामारी संकट का साया,
सन्नाटा, गांव,शहर में छाया,
ऐसे परिवेश में जीवन की,
अवधारणा भी अधूरी हैं।
ये कैसी मजबूरी हैं?
उत्पन्न कैसी बिमारी है।।
वर्षा(एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया