“उत्तर से दक्षिण”
उत्तर से दक्षिण की राहे; कल कल बहती नदियों की बाहें ,
सीमित धैर्य अदम्य सा साहस; कहती जैसे आरंभ की राहें ,
वो दुधिया रंग जो गर्भ गंगा का; सुखे अधरों पर लिखती कविताएं ,
कंचन-कंचन हो जाती तब ; गुंजित वन में चारों दिशाएं ,
उलझन से मुक्त धरा भैरवी ; जंगल – वन – पाताल – शिलाएं ,
जंगल – वन – पाताल – शिलाएं ☀️
©दामिनी
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