भक्ति
धर्म स्थान पर जाकर कब भक्ति हम कर पाते हैं
हम तो अपने लिए भगवान को रिझाते हैं …
कभी मिठाई कभी चादर/वस्त्र चढाते हैं
कभी दानपेटी में डाल पैसे इतराते हैं …. ..
आज जब सैलाब में लाखों आंखें नम हैं
क्यों नहीं इनमें हम परमात्मा को देख पाते हैं।
.दुखियों के तन ढंक सके तो उन्हें वस्त्र खुद चढ जाएंगे।
मिल जाए कुछ खाने इन्हें तो उनके पेट खुद भर जाएंगे
दान पेटी में डला धन नहीं चाहिए उन्हे
इससे परमात्मा नहीं अमीर बन जाएंगे।
मानती हूं धन से जख्म इनके नही भर पाएंगे
पर शायद कुछ भूखों के पेट ही भर जाएंगे
आओ आज हम मंदिर मस्जिद नही जाते हैं
किसी भूखे को चलकर खाना खिलाते हैं
किसी के जख्मों पर मरहम लगाते हैं
आंसू किसी के पोंछकर कुछ दर्द उनका मिटाते हैं।
@उत्तराखंड त्रासदी २०१६