उतार-चढ़ाव जिन्दगी के
आते हैं
जिन्दगी में
उतार-चढ़ाव
हर किसी के
जीवन में
हो
उतार पर
ये जीवन
जब
दो मत
उलाहना
चलती
रहती है
नाव नदी में
पहुंचाती है
मुकाम पर
डगमगाती है
जब भंवर में
देते हैं ताना
सब नाव को
है वह तो
निर्विकार
सहज औ
सरल
करते
अच्छी परवरिश
माता पिता
बच्चों की
अनदेखी कर
संस्कारों
बिगड़ते जब
सहन करते
ताना वो
जिया जिन्दगी
मेहनत
ईमान से
न घबराओ
उलाहना
तानों से
मिलेगी सफलता
जिन्दगी मे
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल