उतर आई ज़मी पर चाँदनी…..
उतर आई ज़मी पर चाँदनी सज कर जरा देखो!
खिली मैं चाँद के जैसी सजन पागल हुआ देखो!
बने मेरा मुकद्दर वो यही बस आरजू मेरी!
ख़ुदा का शुक्र करती हूँ असर लाई दुआ देखो!
करो तुम याद उस दिन को लिया जब हाथ हाथों में!
बदन मेरा सिहरता है जहाँ तुमने छुआ देखो!
छुपाया लाख उल्फ़त में मगर दस्तूर है ऐसा!
जहाँ अंगार हो उठता वहीं होता धुआँ देखो
बहकती हूँ तुम्हें पाकर शरम से लाल होती हूँ!
पिलाया था नज़र से जो नहीं उतरा नशा देखो!
चलो मिल कर मिटाते है हमारे बीच की दूरी!
कदम मैं भी बढ़ाती हूँ कदम तुम भी बढ़ा देखो!
नज़ारे बिन तुम्हारे आज भी लगते अधूरे है!
कयामत बन चले जाओ करो “श्री” को फ़ना देखो!
अनन्या “श्री”