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26 Jun 2022 · 1 min read

उडान कैसी

मेरी उडान व्यक्तिगत नहीं,
गिरते समय पैराशूट तो..
उडते समय हवाई जहाज,
प्रत्यक्ष उड्डयन है ये सब.
.
सोच विचार व्यवहार सब कैद
यांत्रिक है सब कुछ,
गारी आवत एक,पलटत एक अनेक,
दृष्टि के दृष्टिकोण, इतने पतित.
हो चाहे, बहन भाई, दर्शक निम्न सोच के,
प्रकृति अस्तित्व का जितना नुकसान
मनुष्य ने किया है,
जीवन को नष्ट करने की स्थिति में खडे
ठोलेदार, मक्कार, नमकहराम, बदमाश
.
मनुष्य पर भोजन की व्यवस्था का बोझ इतना है, भूख प्यास जैसी आवश्यकता
पूरी नहीं हो पा रही,
सर्वांगीण विकास रुक गया.
प्रतिस्पर्धा इतनी बढ गई.
हीनता छा गई.
मनोबल जुझारूपन दिखाई देता नहीं.
आत्महत्या बढ़ गई.
सृजन का अभाव आ गया,
बुद्धि तबाही चाहती है.
अपने घर की रक्षा.

धर्म कोई विषय नहीं.
कोई विकल्प भी नहीं,
नफरती लोगों का जमावड़ा है.
एक दूसरे को गलत.
खुद को सही ठहराते है.
विरोध का मतलब विद्रोह.
आज का आदमी उडान के हुनर को भूल सा ही चुका है.
कल्पना प्रेम आदर्श महापुरुष
सिर्फ़ सोच जैसी ही प्रक्रिया रह गई.

हंस महेन्द्र सिंह

Language: Hindi
219 Views
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