उड़ा दो अरमानों की तितलियाँ
धुंध के बादल छट जाए
हौसलों को दो इतनी उडान
चाहतों के बादल गरजे फिर
हृदय सागर में लाओ तूफान
बो कर कामेच्छा के बीजों को
रोपना न भूल जाना फिर तुम
देकर लगाव, स्नेह का पानी
वटवृक्ष जैसा पेड़ लगाना तुम
सुप्त अवस्था में जो अरमान
झकझोर के उनकों उठा दो
लगा के पंख अरमानों को
गुब्बारों सा ऊँचा उडा दो