*उड़ान मन की*
उड़ान मन की (गीतिका)
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ऊंची उड़ान मन की लेकर आगे बढ़ना।
गिरना उठना सौ बार मगर आगे बढ़ना।
नयनों में हो स्वप्न सुनहरे कल के जगमग,
साहस फिर से नया दिखाकर आगे बढ़ना।
आँखों में आँसू गम के मत आने दो तुम,
आएं तो चुपके से पीकर आगे बढ़ना।
कभी निराशा के क्षण भी आ ही जाते हैं,
पाकर सबसे पार निरंतर आगे बढ़ना।
असमंजस से भरी हुई है राह प्रेम की,
कभी रूठकर कभी मनाकर आगे बढ़ना।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य