उड़ने दो
-उड़ने दो
बेटियां पराई नहीं है
दो घर का उजाला है।
इन्हे जी भर जीने दो,
नहीं बांधों जल्दी गृहस्थ बंध
विश्वास की लगाम हो उन पर बस
इन्हें मुक्त नभ में उड़ने दो।
आंखों में इनके हज़ार सपने
उनमें मंजिल तक जाना बाकी
इन्हें समझने का भी मौका दो।
निज स्नेह डोर से बांध रख
कदम अकेले इनको चलने दो।
गर आएं रोड़े पत्थर राह में,
खुद-ब-खुद इन्हें आगे बढ़ने दो।
वक्त बदलेगा अब आगे- आगे
जिम्मेदारी पाश में बांधने की
इतनी भी जल्दी नहीं करो।
खुशियां है उनकी उनको पाने दो
चेहरे पर मुस्कान उनके भी आने दो
खिलने से पहले मुर्झाए कली
ऐसा कदापि ना होने दो।
महकता रहे सदा ऐसा पुष्प
उन्हें वैसा सुमन सुंदर बनने दो।
मर्जी अपनी मत थोपो,
हुनर है जो उनमें पारंगत
उसमें ही आगे बढ़ने दो
अरमान उर रचे सजे
उनको पूरा होने दो।।
– सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान