उड़ते हुए परींदे
जब मै देखता हूँ मै उड़ते हुए उन रंग-बिरंगे पतंगो को आकाश मे,
न जोने क्यो विचारो के पतंगे उड़ने सी लगती है निले अंम्बर मे।
उगूंलीयो के ईशारे पर नाचने की फितरत होती है इन पतंगो मे,
उगूंलीयो पर नचाने की क्या खूब फितरत होती है उन पतंग बाजो में।
तभी देखा एक छोटी चिड़िया को उड़ रही थी इन पतंगो के बिच मे,
ढ़ूंढ रही थी बह रास्ता जल्दी से पहुंचने को अपनी रात्रि आशीयाने में।
क्या खूब पहचानने कि संवेदनशीलता होती है इन सभी परींदो मे,
फिर भी भटक जाती है कभी-कभी उलझ के इन रंग-बिरंगी पतंगो मे।
रात होने वाली है आओ लौट चले अपने आशीयाने में,
सुबह का भूला शाम को वापस लौट आये अपने आशीयाने में,
फिर उसे भूला-भटका नही कहते हैं अपने मानव समाज मे।