उठ मेरी बेटी
बकरियाँ
मिनमिनाती हुई
जाने लगीं
ज़ंगल की ओर ;
रोज़ की तरह
समझाती हुईं
समय की
पाबंदी का अर्थ ।
बजने लगे
पहट से लौटती
भैंसों के गले के घंटे ;
तुझे समझाने
कर्तव्य की परिणति ।
हवा भी
बजाने लगी
तेरे लिए , पेड़ों के
पत्तों का घुनघुना ।
देख बेटी !
दादी ने भी
कर दी कर्म की
सुंदर व्याख्या
रोज़ की तरह
दीवाल पर
उपले थापकर ।
बिल्ली ने
तेरा बिस्किट का
पैकिट लेकर
कमरे से छत पर
लगा दी छलांग ।
टामी भी
खेलने लगा
तेरी गेंद और
गुड्डे से ।
मम्मी ने भी
सजा दिया
ममता भरे हाथों से
तेरे स्कूल का टिफिन ।
हवा ने भी
भीतर आकर
खोल दिए
तेरी होमवर्क की
किताब के पन्ने ।
देख बेटी !
खिडक़ी से झांककर
सूरज ने भी
बिखेर दी तेरे चेहरे पर
अपनी पहली
किरण की लाली ।
उठ मेरी बेटी !
सबेरा हुआ ।
स्वीकार कर
पापा की दुआ ।