उठ जाग मुसाफिर सुबह होने वाली है
* उठ जाग मुसाफिर सुबह होने वाली है *
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उठ जाग मुसाफिर सुबह होने वाली है,
भीड़ बहुत संसार मे जगह खोने वाली है।
हर कोई खोया है खुद के बनाये जहां मे,
गर्दिशे तूफान मे मन सतह खोने वाली है।
फंस रहा है इंसान क्यों अपने ही जाल मे,
मुश्किल भरे पलो की वजह होने वाली हे।
भूल जा उस बात को जो हुई जस्बात में,
जो बनी और संग उसी तरह होने वाली है।
विरही बन जहान् में क्यों घूमता मनसीरत,
संयोग के ही काल में विरह होने वाली है।
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सुखविंद्र सिंह मन्सीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)