उठो रूप काली का धरके, तुम तलवार उठाओ••••
वो रोती रही चिल्लाती रही और खून “जिसम” से बहती रही ।
उसकी चितकार ना पहुंच सकी श्री राधापति के कानो तक ।।
आसमान भी रोने लगा अब धरती भी थर्राई है ।
एक खबर यार मणिपुर से हम सब के कानो तक आई है ।।
कुछ दुष्ट दुसासन दुर्योधन ने कर दिया द्रोपति चीर हरण ।
अध्याय अधूरा महाभारत का सबने पूरा देख लिया ।।
उठो द्रोपती न जोड़ो हाथ आखों से अश्रु बहाओ न ।
उठो रूप काली का धरके तुम तलवार उठा लो ना ।।
उठो धारा पर सोने वालों कब तक “आंख” को मूदोगे।
दो शब्द इस “मानवता” पर कब अपने “मुख” से बोलोगे।।
न्यूज देखने वालो सुन लो कैसे तुम रह पाओगे।
“फूलनदेवी” जाग गई अगर मणिपुर की “नारियों” में,
फिर चारो दिशा में एक नाम बस जय “काली” का गूंजेगा।।
“ अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च ।
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षित रक्षितः ।। “