उठो नारियो जागो तुम …
उठो नारियो जागो तुम
और न अब इन्तजार करो,
जोर-जुल्म अन्याय-नीति का
जमकर तुम प्रतिकार करो,
उठो नारियो जागो तुम …
नहीं किसी से कम हो तुम,
कैसे तुम यह भूल गईं ?
तुम से ही जग जन्मा है,
क्या यह तुमको याद नहीं ?
तुम जननी, माता, महतारी,
तुम ही जीवन दाता हो,
तुम में ही सब रूप जगत के
तुम ही श्रृष्टि स्वरूपा हो,
बिना तुम्हारे कौन बना है ?
सोचो, तनिक विचार करो।
उठो नारियो जागो तुम…
अनुपम कृति हो तुम प्रकृति की
मानवता की द्योतक हो,
तुम साथी, संगिनी, सहचरी,
संकट में संकटमोचक हो,
करो स्मरण स्वंय शक्ति का,
मत अबला बन, लाचार बनो,
पहले जानो खुद ही खुद को,
फिर जग का ज्ञान आधार बनो,
तुम से बढ़कर कौन जहाँ में ?
आगे बढ़ नेतृत्व करो,
उठो नारियो जागो तुम…
निश्चय करो संभालो खुद को,
कर्तव्यों से विमुख न हो,
पढ लिख प्रज्ञावान बनो तुम,
संगठित हो संघर्ष करो,
सीधी-सच्ची बनी रहो पर,
हक अपना मत मरने दो,
कोई कितना भी अजीज हो,
मनमानी मत करने दो,
बाधाओं को धता बताकर,
नवसृजन शुभारंभ करो,
उठो नारियो जागो तुम…
✍ – सुनील सुमन