उजालों के घर
ऐसा क्यों होता है जब
अपने रूठ जाते हैं
आँखें रोती हैं और
दिल टूट जाते हैं।
इतराते हैं शूल यहाँ
फूल टूट जाते हैं
अपरिमित प्रेम के अग्र
स्वार्थ जीत जाते हैं
घोर अमावस चारों ओर
उजालों के घर पहरे
शकुनि की बिसातों से
छलनी पड़े सब चेहरे।
गांडीव रख दे अर्जुन
मूंद लें सब नेत्र वीर
कहो, कौन्तेय! देख सब
सूखे क्यों हैं तेरे नीर।
ऐसा क्यों होता है जब
प्रश्न ही यक्ष हो जायें
कह न सकें हम कुछ भी
उत्तर प्रश्न ही बन जायें।।
सूर्यकांत