उजाले
उजाले
देखते ही देखते
कितने ही दिए
जला दिए
अनगनित
सैंकड़ों
हजारों
लाखों
करौडों ही
दिए जल उठे
लेकिन
मन का अंधेरा तो
फिर भी बना रहा
उसके जाने के बाद….
जाने कैसा सूरज
था वो मेरा
अंधेरे की घनी चादर
तन गई
एक एक करके
दिए जलते रहे
वो पहले सा
आलोक कहां चला गया
और साथ ले गया
आशा की किरण
ओजस उज्जवल मुस्कान
स्मित विश्वास के पल
मधुर भाव
रह गए गलियारे
लंबे सिमटे से गलियारे
यादों के
जो एक एक पल जिए
उन्हें पलपल मैंने जिया
उन यादों के कीमती पलों में
मै खोई रही
मरती भी रही
जीती भी रही
– लगा शायद यही मेरा
जीवन है
मेरा प्रारब्ध
मेरी नियति ।
डॉ करुणा भल्ला