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10 Nov 2021 · 1 min read

उजाले लापता हैं और कोई गवाह नही है

बियाबान है जंगल यहाँ कोई सदा नही है
दम सा घुटता है अब कहीं भी हवा नही है

खमोशी से आकर छा गए सब और अंधेरे
उजाले लापता हैं और कोई गवाह नही है

ये जो जिद है तुम्हे वफ़ा मे मर जाने की
इस मर्ज का इलाज तो है मगर दवा नही है

क्यों डरते हो तुम वक़्त के हुकमरानों से
अपनी तरह वो बशर है कोई खुदा नही है

कई सदियों से यूहीं छुपा हुआ है वो’आलम’
दिल मे बसा है बस आंखो मे रवां नही है

मारूफ आलम

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