उजड़ती वने
यह जमाना सहज – सहज
दृढ़ीकरण तो कर रहा ये
अनुमोदन के संग-संग ही
प्राकृतिक संसाध्य को हम
कर रहे हैं क्षति, विध्वंस
पेड़ – पौधे हो रहे वीरान
बस्ती पे बस्ती बसा रहे…
सबब ऐसे चलता रहा तो
अग्रे के अवकाश, लम्हें में
जीना हो जाएगा दुस्साध्य
उजड़ती वने को सतत् ही
मिलजुलकर रोकना होगा ।
ऐसे ही चलती रही तो
एक दिवा ये रत्नगर्भा
पूर्ण रूप से होगी शून्य
प्राणदायिनी न मिलेगी
खाना – खाने पर के हमें
पड़ जाएंगे लाले एक दिन
उजड़ती वने को सतत् रोके
वन लगाने का प्रावधान करें
इन उत्कष जनसंख्या को
सतत मिलकर रोकना होगा
तभी तो यह वसुन्धरा बचेगी
तव ही भविष्य होगा सुरक्षित ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार