उचित नहीं
उचित नहीं
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बदलो तने हुए तेवर को, उचित नहीं आपस में लड़ना ,
बनकर फाँस सरीखा चुभना, कंकर-सा पाँवों में गड़ना ,
बैसाखी यदि बने किसी की, तो महान तुम कहलाओगे ।
पीर सुनो भारत माता की, देख रही जो मौन झगड़ना ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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