उखड़ा जो पेड़ गिरा
उखड़ा जो पेड़ गिरा , हरा-भरा वृक्ष फिरा ।
भूमि पर गिरा-गिरा, फलता ही जा रहा।
खाद पानी बिना जैसे , जीवित है वृक्ष ऐसे।
बिन भूमि जड़ कैसे, पलता ही जा रहा।
हरा भरा तना घना ,पड़े पड़े धूल सना।
कोंपलों को खिला बना, ढलता ही जा रहा।
वृक्ष की घनी-घनी, टहनियां नई बनी।
पुष्प पात कली-कली, छलता ही जा रहा।
डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम