ईश की माया अजब
ईश की माया है अजब
बड़ी लीला अपरंपार है
परिवेश बहुत खुशनुमा
कहीं हालात गमसीन है
लगी है सावन की झडी़
तो कहीं सूखा अपार है
मौसम है बेमौसम सा
धूप हैं तो कहीं छाँव हैं
जीवन के रंग हैं गजब
प्रत्येक रंग बेमिसाल है
खुशियों की है बहार सी
कहीं गम गले का हार हैं
कहीं देता है वो इंतिहा
होता कहीं मोहताज है
रहने को छत ही नहीं
कहीं छत बेहिसाब है
जिंदगी है सुकून भरी
भूख है कहीं प्यास है
कहीं बंसत बहार है
कहीं शिशिर झाड़़ है
सुखों को है बिखेरता
कहीं दुख बेहिसाब है
वियोग में रंगहीन सा
संयोग में रंग भरता है
कीर्तन हैं कहीं रामधुन
कहीं नमाज अरदास है
कहीं जिंदगी है रसभरी
कहीं जिन्दगी हताश है
ईश की माया है अजब
बड़ी लीला अपरंपार है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत