ईश्वर
ढूंढते थे ईश्वर मंदिरों में,विपदा पड़ी तो जाना,
वो तो,रहते हैं थाने और अस्पतालों में।
न अपनों से मुलाकात,न आराम की कोई बात,
पी.पी.ई ,की परतों के बीच ,पसीने से तरबतर शरीर,
दया से भरपूर, हौसले से अमीर।
वो हफ्तों तक घर नहीं जाते,
दिन कटता वॉर्ड में, कुर्सी पर कटती रातें।
कहते हैं ,सबमें ईश्वर बसता है,
सच है ,वह सफेद कोट, ख़ाकी वर्दी में रहता है।
उस रोज़ वह तस्वीर देख दिल रो पड़ा,
आधे खुले दरवाज़े के बीच से ,पापा को देखती बिटिया,
दूर खड़ी है ,पापा अंदर नहीं आ सकते,
वो चौखट लांघ नहीं सकते।
मुंह पर रूमाल लपेट ,फिर निकल जाते हैं,
गुड्डी तुम अंदर रहना, पापा भूखे को खिला कर आते हैं।
हम डरे हैं ,क्या उन्हें कोरोना का डर नहीं सताता।
वो योद्धा नहीं , वे शूरवीर भी नहीं,
पर वे ही हमारे कवच हैं, प्राणों के रक्षक भी वही
ईश्वर ने हर मानव तक पहुंचने को, यह भेष लिया है,
उसी ने देखो,डॉक्टर, नर्स, पुलिस,सफ़ाईकर्मी का रूप धरा है।
सुनीता सिंघल
वडोदरा