ईश्वर
शीर्षक – ईश्वर
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सच तो हमारी सोच होती हैं।
समय और भाग्य ही होता हैं।
बस ईश्वर हमारे मन भाव हैं।
तस्वीर और मूर्ति पूजा करते हैं।
कल्पना और अनुमान होता हैं।
ईश्वर को न देखा हमने हैं।
यंत्र मंत्र शक्ति का सुना समझते हैं।
सच तो हमारी सांसें होती हैं।
न मालूम जिंदगी में सच कहती हैं।
हां बस हम ईश्वर को मानते हैं।
एक विश्वास और प्रेम भाव होते हैं।
हवा पानी और आकाश धरा अग्नि हैं।
यही तो शरीर के साथ-साथ रहते हैं।
संसारिक मोह-माया तो हमारी सोच हैं।
हमारे स्वार्थ और फरेब मन रखते हैं।
सच तो ईश्वर का मत न भाव होता हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र