ईश्वर है
कभी-कभी लगता है
वो कुछ करता नही,
पर ऐसा नही वो सबकुछ करता है ;
कभी ऐसी घटना घटती है
कि, उसके अस्तित्व पर हीं सवाल उठता है,
देखता हूं उसका न्याय
तो अन्यायी जैसा लगता है,
फिर भी आशावादी होने के नाते आस लगाये बैठता हूं तो, एक रोशनी नजर आने लगती है,
ऐसा देख लगता है कि वो खड़ा है मेरे पास
उसने जो किया वो अकारण नही था,
उसके हर किये हुए के पीछे एक कारण था
क्योंकि वो निरुद्देश्य नही करता
हम सोंचते हैं कि ऐसा होगा
पर वो कुछ और सोचता है
और उसकी सोच में ही नियति का भला है ;
कभी-कभी ऐसा नही लगता है कि,
मेरा बना- बनाया (काम) बिगड़ गया
बने काम को बिगाड़ना और
बिगड़े को बनाना उसकी प्रकृति हो सकती है
पर उसका न्याय नही हो सकता;
न्याय तो वह अन्यायियों की तरह करता है,
लगता है उसके हृदय में दया नही,
वह निष्ठुर निर्दयी हो सकता है
न्याय देने के लिये ,
वह एक-एक कर के लेता है हिसाब
हमारे कर्मों का , वह निष्पक्ष है, तटस्थ रहकर भी
सबके साथ चलता है,
पर पक्ष धर्म का लेता है
और धर्म के लिए
इस धरा पर अवतरित होता है ।
हम(साहिल) तो निमित मात्र हैं कर्ता तो वो(ईश्वर) है ।
9973343915 ??? ………