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27 Sep 2021 · 2 min read

ईश्वर का साक्षात्कार

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चरम ख़ामोशी
चरमपंथियों की नाईं हठी और
हीनत्व तक पतित
रात्रि के अंधकार में
उजाला सा पसरा था,क्यों?
तुम खामोश
किकर्तव्यविमूढ़ता तक मुर्ख
उसके लिए नारे ढूंढने को व्यस्त
अपने अस्तित्व की सौदेबाजी में
विक्रेता सा ठहरा था,क्यों?
तुम उस अंधकार के उजाले में
लिए उथल-पुथल मन में
दरवाजे की ओर बार-बार
व्याकुल मन से करते थे
ईश्वर का साक्षात्कार,क्यों?
तुम्हारा वह ईश्वर कितना! था ईश्वर
तुम जानते थे,क्यों?
तुम्हारे ईश्वर के पास कोई संकल्प नहीं था
ईश्वर का सत्य तुम गये हार
ध्वस्त हो गया था तुम्हारा
कल्पनाओं का संसार
तुम्हारे ईश्वर ने जीवन रचा या नहीं
क्या मालूम!
पर,रच दिया है जीवन जीने की चुनौती
यह तो नियति है,कहोगे
कहकर करते रहोगे अपना ही बलात्कार,क्यों?
ख़ामोशी-जीवन के अंत का प्रारंभ है
नारे जीवन के प्रारंभ का अंत।
मानवता मात्र सत्य है शाश्वत सत्य
तुम्हें ईश्वर के विस्तार में स्थापित करेगा अनंत।
प्रशांत नीरवता में चमकता हुआ आलोक
तुम्हारे विवेक का द्वार खोलने को उत्कंठित।
तुम हठ की स्थापना को उद्धत
सर्वदा स्वयं को करते आए हो पराजित।
जानो कि
तुम्हारा सत्य स्वच्छ और छन्दोबद्ध है।
तुम्हारा छन्द स्वच्छ और सुंदर है।
तुम्हारा यांत्रिक और तांत्रिक व्यवहार भी
सत्य की अपेक्षा से होता रहा पुलकित है।
अत्यधिक उद्विग्न है उद्भ्रांत और विकल
तुम्हारा मैं।
अहम॒वाद और आत्मवाद प्रतिक्रियावाद से
प्रतिष्ठा करता है प्राप्त किन्तु,कलंकित है।
अंतहीन गरूर में भरा खुद से निर्वासित है
तुम्हारा मैं।
नीलकंठ ने किया विष का पान
तरल जल की भांति
उगलेगा वाष्पित अंश।
मानव को होगा दन्तहीन दंश।
वैष्णवीय प्रक्रियाओं में क्यों नहीं ढ़ूंढ़ते शिव
और शैव क्रियाओं में विष्णु?
विभाजित करते-करते तुमने
स्वयं को कितना कर लिया है विभाजित देखो।
अँधेरे शब्दों या शब्द के अँधेरे में लुप्त हो रहे तुम
नारे के शब्दों को तो गढ़ लो
अपना आदिम अर्थ तो पढ़ लो।
निर्विकल्प निर्विकार समाधि से
निकलता हुआ आदि शिव हर श्राप को
लिपिबद्ध कर तुम्हारे ओर उछाल
व्यथित होगा या निर्जीवित देखो।
इतने उज्ज्वल आभा से
निविड़ अंधकार के क्रोड़ में प्रस्थान
वह सूक्ष्म काया
तुम्हारा वर्जन है।
आज तुम प्रस्तुत समस्त प्रावधानों में
जो चुनोगे वह तुम्हारा मानवता से
स्खलन और विसर्जन है।
विश्व विश्वसनीयता के नीयत से
हटता हुआ कितना कुरूप और वक्र होगा
ईश्वर से ही पूछो।
तुम्हारा महान आशय हमारी मृत्यु को
किसी गर्भ में नियोजित करेगा अक्षरश:
तुम अपने मैं से एकांत अंधकार में
पूरे मानवीय सम्पूर्णता में पूछो।
तुम धन्य बनो।
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Language: Hindi
335 Views
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