ईश्वर का खेल
ईश्वर का खेल भी निराला है
पहले जीवन देना और फिर जीवन लेना
बिछाकर धरती पर अपनी शंतरज का विषाद
हम सब इंसान और जीव-जंतु को
बनाकर अपना मोहरा
ईश्वर ने क्या खूब खेल खेला है।
किसी को जीवन दान देना
किसी का जीवन छिन लेना
यही तो ईश्वर का खेला है
यह दुनियाँ शतरंज का एक मैला है।
रोज चलता है सब अपनी चाल
कोई सुख की तरफ चाल बढाता है
कोई दुख की तरफ चाल बढाता है
मदारी बनकर ईश्वर हमें रोज नचाता है।
हम नाच रहे है कठपुतली बन
खेल वह ऊपर से खेलता जाता है
लिखता है वह किस्मत हमारा
हम तो सिर्फ धरती पर उसका मोहरा है
जैसा चाल चलता है वह
वैसे चलते जाते है
है डोर हमारा उनके हाथो मै
ये बात वें रोज हमें समझाते है
हमारे कर्म के अनुसार
वें रोज हमें नचाते है
जैसा कर्म करोगे,वैसा फल देंगे
यह बात वें अपनी चाल से
बखूबी हमें बताते है।
~अनामिका