“ईश्वर का खिलौना”
ऊपर वाले तूने क्या ,सोचकर दुनिया बनाई होगी।
दुनिया बनाई तो ठीक , सुख के साथ दुख क्यों ।
क्या तुझे हंसती खेलती, दुनिया रास नहीं आ रही थी।
तुझे भी दुनिया बालों की तरह, दूसरे का दुख भाया।
देख तो तू इस दुनिया को ,आज कितनी परेशान है ।
सब तरफ त्राहि-त्राहि रोज जल रहा इंसान हैं
ऐसी भी ,क्या? मजबूरी थी, जो दुख को तू रोक ना पाया
क्या !तुझे कभी यह बात ,परेशान नहीं करती थी
तेरा बनाया इंसान भी आज, इतना परेशान है।
तुम पलक झपकते ही क्यों, तकलीफ दूर नहीं कर देता।
यह तेरे बनाए खिलौने हैं, जो अंदर ही अंदर परेशान है
ऐसे खिलौने तूने क्यों बनाएं ?बनाए तो ऐसे क्यों सताए ?
मिटते हुए खिलौनों को ,कितनी तकलीफ है, क्या तू इससे अंजान है
कहते हैं तू तो सर्वज्ञ है ,फिर क्यों ?अपने ही खिलौने को
,बिखरते देखता है
जानबूझकर अनजान ना बन और संभाल ले इंसान को।
तेरा अनूठा पसंद खिलौना ओड रहे हैं मौत का साया।
तुम पलक झपकते ही क्यों ?तकलीफ दूर न कर पाया।