ईश्वरीय फरिश्ता पिता
पिता बच्चों के होते अरमान
इन्हें रहते कभी भी अर्भ को
न छू सकती मर्ज़, शिथिलता
पिता का ह्रदय होता मनोरम ।
पिता अपने बौद्धभिक्षुओं को
ले जाना चाहते ऊंचे शिखर पे
हमारे लिए वह करते रियाज़त
पिता होते अनाचार ही प्रज्ञावान् ।
पिता तो होते अत्यल्प अकाट्य
अन्याय के संगी जब बनते हम
वह हमें डांटकर पीटकर कैसे भी
लाते न्याय के पंथ पे सतत से ही ।
किंचित ऐसे भी पिता देखे हमने
जो दिनभर करके आते मजदूरी
अपने मुआहार बच्चों को खिलाते
ईश्वर का भेजा फरिश्ता होते पिता ।
जिसके पिता ना होते भव में
वो बेचारा याद करता है उन्हें
काश मेरे भी होते पृत परमेश्वर !
दुनिया की हर खुशी देते पिता ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार