Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Apr 2022 · 3 min read

ईश्वरतत्वीय वरदान”पिता”

क्षितिज से विशाल,
रत्नाकर से गहरें,
शालीन उदार संयमी तपस्वी,
जो कोटिश ऋषिमुनियों की,
पवित्र पावन तपोभूमि पर,
कठोर तप का,
ईश्वरतत्वीय वरदान है….

सांसारिक काँटों के बीच,
नन्हें परिंदें का आधार स्तम्भ,
सुंगधित पारिजात पुष्प,

वटवृक्ष की शीतल छाया,
तो कभी कभी,
नारियल से सख्त,
पर अन्दर से मिठास भरे,
कोमल स्वभाव,
मृदुलता के स्वामी,
गुणी व्यक्तित्व के धनी है,
पर
उनके मन की परिक्रमा करना,
भूगोल सा विस्तृत,
इतिहास सा लम्बा है,
जिसमें,
मोहनजोदड़ो के,
इतिहास से भी दुर्लभ,
विसर्जित संतोष,
त्याग के अनगिनत अवशेषो के,
स्मृतिचिन्ह दफ्न है,
और
भौगोलिक देह के उद्गमस्थल पर,
दायित्वों,जिम्मेदारियों के अमेजन जंगल में,
व्याधियों, पीड़ाओं का माउंटेन एवरेस्ट पर,
नेत्रों में थार सा रेगिस्तान लिए,
सु:ख, दु:ख के मैदानी भाग में,
परिस्थितिवश,
रिश्तों की दूरियों में,
असमंजस, धर्मसंकट की,
अक्षांश व देशांतर रेखाओं के मध्य,
प्रेम का पुल बनाते हुए,
सामंजस्य की विषुवत रेखा में,
सम्बंधों को संगठित करके,
अपनत्व की तापिश में,
स्वयं झुलसते है जो….
और
एकांत के गलियारे में,
मौन की चादर ओढ़कर,
खालीपन के एहसासों,

जज्बातों के उमड़े हुए,
बंद कमरें मे दरवाजे के पीछे,
उधड़ी हुयी बेरंग, खपरैल दीवार,

बारिश की टपकती छत में,
जिनकी विवक्ता (अकेलापन) रोती….

काँटों के पथ चलते हुए,
चुभते शूल,
अस्तित्व को,
लहूलुहान कर देते हैं,
लेकिन,
अन्तरात्मा के उधड़े हुए,
चीथड़ो को समेटकर,
उम्मीद की सुई में,
निष्ठा का धागा ड़ालकर,
आत्मविश्वास के मोती पिरोकरके,
पीडा़,मुश्किलें व कठिनाईयों के,
घने बादलों में,
रेल और पटरी,

संगीत के सुर लय ताल के मध्य सा,
तालमेल बैठाते हुए,
समझौते की अमरबेल पर,
तिरस्कार का गरल (विष),
कंठ में धारण करके,
अपने परिवार के प्रति,
हर्ष,आनंद की अमृत वृष्टि से,
आशीष,स्नेह, ममत्व का
अमरत्व प्रदान करते है….

अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि पर,
गर्दिश के मरूभूमि में,
इच्छाओं का दमन करके,
अपने सपनों के,
अस्थिकलश को,
बलिदान की धारा में,
प्रवाहित कर देते है जो….

सु:ख के पगडंडियों मे,
सदैव खुद को सबसे पीछे रखते हैं,
जीवन के प्रत्येक पद्धति पर,
हर परिधि को लाँघकर,
कर्तव्य और
पारिवारिक उत्तरदायित्वों के लिए,
स्वंय को खर्च कर देते है….

चुनौतियों की उष्मा में,
उपेक्षा की घने धुंध में,
कालचक्र की कसौटी पर,
हतोत्साहित साँझ में,
चीत्कारती व्याकुल आत्मा,

बहते अरमानों के रक्तकणिकाओ को,
तार तार होते स्वाभिमान को,
रौधें गए मान सम्मान के,
संवेदना, सान्त्वना में मिली,
काँच की किर्चियों को,
भावनाओं की पोटली में बाँधकर,
हृदय की संदूगची में,
छिपा लेते है,
और
मस्तिष्क मे छायी,
चिंता की लकीरें को,
खुरदरे हाथों को रगड़कर,
टूटी आस की चप्पल को,
द्वार पर उतारकर,
वीर्य(तेज,प्रभावशाली) स्वर संग ध्वनि करके,
मुख आवरण पर,
अल्पना की छटा सहेज लेते है,
और भूल जाते सारी थकान….
अपमानित वेग को,
देखकरकें
संतान की खिलखिलाहट में…
मानों दु:ख का पहाड,
रूई की भाँति,
हल्का हो गया हो जैसे,
उसछड़ जीवन में….
पर
बेचैनियों की तलहटी में,
रात्रि पहर,
सुषुप्त सी आँखें जागती,
और देखती रहती,
संतान का भविष्य,
पकड़ाई गयी,
आकांक्षाओं की अनुसारिणी (सूची) को…

प्रातःकाल सूर्योदय की लालिमा में,
धैर्य का दामन थामकर,
विश्वास की किरण में,
नेह की बालियां रोपने,
उत्तरकृति में,
आकांक्षाओं की सूची पकड़े,
व भरण पोषण निर्वाहन हेतु,
खुशियों की चंद रेजगारी के लिए,
तन पर त्याग के,
वही पुराने फटे हुए परिधान पर,
चुपके से पैबंध लगाकर,
पैरों मे फटी बेवांईया संग,
सज्ज होकर,
स्वंय को तराशने चल देते हैं…

जीवनसंगिनी,
माता-पिता ,भाई-बंधु,
बहन के रक्षक,
व संतान के लिए,
अडिग चट्टान सी,
ढाल बन जाते हैं,
संस्कारों के बीज रोपकर,
शिष्टाचार,आचरण का पाठ पढ़ाते हैं,
कंधे पर बैठाकर,
कामयाबी का शिखर छूकर,
लक्ष्य को जो भेदना सिखाते है,
संसार की सारी दौलत जो हँसकर
बच्चों पर वार देते है,
जो अपना आज,कल,
और सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर कर देते हैं,
जो सृष्टिकर्ता, सृष्टीसृजन के बीज होते हैं,
जिनके निस्वार्थ भाव के समक्ष,
नतमस्तक हो शाष्टांग प्रणाम,
करती है “अभिधा”
जिनकी महिमा का बखान करने में,
अक्षुण्ण,असमर्थ,
व जिनके सार्मथ्य के सम्मुख,
खुद को रिक्त पाती है….

ऐसे देवतुल्य,परब्रह्म,
धरा पर साक्षात,
“ईश्वर”होते है,
“पिता”….🙇🏻‍♀️

©®-अर्चना शुक्ला”अभिधा”
शुक्लागंज (उन्नाव)
(उत्तरप्रदेश)

12 Likes · 13 Comments · 505 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
Neelofar Khan
3540.💐 *पूर्णिका* 💐
3540.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
दुनिया को छोड़िए मुरशद.!
दुनिया को छोड़िए मुरशद.!
शेखर सिंह
चौथापन
चौथापन
Sanjay ' शून्य'
यूं ही नहीं मिल जाती मंजिल,
यूं ही नहीं मिल जाती मंजिल,
Sunil Maheshwari
चलो कोशिश करते हैं कि जर्जर होते रिश्तो को सम्भाल पाये।
चलो कोशिश करते हैं कि जर्जर होते रिश्तो को सम्भाल पाये।
Ashwini sharma
दोस्त बताती थी| वो अब block कर गई है|
दोस्त बताती थी| वो अब block कर गई है|
Nitesh Chauhan
ज़िंदगी जी भर जी कर देख लिया मैंने,
ज़िंदगी जी भर जी कर देख लिया मैंने,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"सब्र"
Dr. Kishan tandon kranti
तेरे साथ गुज़रे वो पल लिख रहा हूँ..!
तेरे साथ गुज़रे वो पल लिख रहा हूँ..!
पंकज परिंदा
माँ
माँ
Dr. Pradeep Kumar Sharma
संबंध
संबंध
Shashi Mahajan
क्या  होता  है  नजराना  तुम क्या जानो।
क्या होता है नजराना तुम क्या जानो।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
प्रेम एक्सप्रेस
प्रेम एक्सप्रेस
Rahul Singh
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
प्रेम का सौदा कभी सहानुभूति से मत करिए ....
प्रेम का सौदा कभी सहानुभूति से मत करिए ....
पूर्वार्थ
वो एक एहसास
वो एक एहसास
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
तेरे बिन घर जैसे एक मकां बन जाता है
तेरे बिन घर जैसे एक मकां बन जाता है
Bhupendra Rawat
बाहर के शोर में
बाहर के शोर में
Chitra Bisht
रामपुर में जनसंघ
रामपुर में जनसंघ
Ravi Prakash
दिल टूटने का डर न किसीको भी सताता
दिल टूटने का डर न किसीको भी सताता
Johnny Ahmed 'क़ैस'
अमृत वचन
अमृत वचन
Dp Gangwar
बिल्ली
बिल्ली
SHAMA PARVEEN
World Environmental Day
World Environmental Day
Tushar Jagawat
मन तो करता है मनमानी
मन तो करता है मनमानी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
वर्षा
वर्षा
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
बाण मां के दोहे
बाण मां के दोहे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
अंदाज अपना क्यों बदलूँ
अंदाज अपना क्यों बदलूँ
gurudeenverma198
#सीधी_बात-
#सीधी_बात-
*प्रणय*
खाक हुई शमशान में,
खाक हुई शमशान में,
sushil sarna
Loading...