ईर्ष्या द्वेश की आग
अपनी नाकामी को लेकर, ईर्ष्या में जल कर भी देखा
अपनी नाकामी को लेकर, परनिंदा में हंसकर देखा
अपनी कमी छुपा कर, कुंठित मन करके भी देखा
अपनी कमी छुपा कर ही, दूसरों को उजागर कर देखा
किंतु शांति ना पाई थी, संचित और गंबाई थी
ईर्ष्या की आग, हमने दूसरों के लिए जलाई थी
हमने अपने मन में समझो, खुद की चिता बनाई बनाई थी
जिसको हम ने आग लगाई, उसको है वरदान बनी
उसी आग की भीषण लपटें, हमको ही अभिशाप बनी
जब ईर्षा द़ेष बुरे हैं जग में, फिर तेरी कहां भलाई है
परख अगर कोई देखे तो, यह स्वयं ही जली जलाई है
ईर्ष्या की भी भीषण भट्टी के, जो भी करीब में जाएगा
जल ना सका अगर पूरी तरह से, झुलस अवश्य ही जाएगा