ईमान से बसर
न इंस्पेक्टर एफ सी आई का,
न कोतवाली का दारोगा।
व्यापारी ठेकेदार नहीं,
कैसे रुतबा ऊंचा होगा।
जब सीमित आय का साधन है,
घर बार खर्च को लिखेंगे ही।
ईमान से बसर करेंगे गर,
तब तो हम कमतर दिखेगें ही,।
घर में रखे एक पिंजरे में,
मैंने है पाला मिट्ठू पैरेट।
वह रोज सुनाता है मुझको,
पैसा घर हो चौबीस कैरेट।
भले कालोनी में मकान न हो,
या शाही शौकत शान न हो।
एक दिन हरि के घर जाएगा,
ईमान ही साथ निभाएगा।
तो फिर क्यों बे ईमान करूं,
उस साहब से नित क्यों न डरूं।
तज दन्द-फंद दो तीन चार,
चल तू अपना जीवन संवार।
यहाँ वहाँ का सब बन जायेगा,
फिर अंत में न पछतायेगा।
जब जाना है सब छोड़ छाड़,
बेईमानी जाए चूल्हे भाड़।
सतीश सृजन, लखनऊ.