“ ईमानदार चोर ”
(यात्रा संस्मरण)
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल”
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विशाल हावड़ा रेल्वे स्टेशन और वहाँ की भीड़ देखकर मैं अचंभित हो गया ! ऐसी बात भी नहीं कि यहाँ आज ही भीड़ उमड़ पड़ी थी ! बस मुझे लग रहा था ! लगातार उद्घोषणा लाउड स्पीकर से की जा रही थी ! चारों तरफ शोर ही शोर ! सारी ट्रेनों का गंतव्य स्थान हावड़ा है और यहीं से सारी दिशाओं में ट्रेनें चलती हैं ! नज़र हटी कि सामान की चोरी ! फिर आप कुछ भी कर लें पर सामान फिर नहीं मिल सकती !
यह बात 19 मई 1993 की है ! मैं कमांड अस्पताल (पूर्वी कमांड) अलीपुर ,कलकत्ता में कार्यरत था ! गत 11 फ़रवरी 1993 को सैनिक अस्पताल जम्मू से मेरा यहाँ स्थानांतरण हुआ था ! बच्चे जम्मू में ही रह गए थे ! उन्हें लाने के लिए मुझे छुट्टी 20 दिनों की मिली थी ! स्टेशन बस मुझे हावड़ा स्टेशन छोड़ दिया ! पता लगा मेरी ट्रेन “ हिमगिरि एक्स्प्रेस ” प्लेटफॉर्म संख्या 3 से खुलेगी ! 45 मिनट्स पहले ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग गयी ! सामान कोई खास मेरे पास नहीं था ! मेरे पास एक बैग और एक छोटी ब्रीफ़ केस थीं !
मेरा आरक्षण एम 0 सी 0 ओ 0 कोटा के माध्यम से हो चुका था ! ए 0 सी 0 2nd कम्पार्ट्मन्ट में मेरी लोअर सीट थी ! मेरे ऊपर वाले यात्री भी जम्मू जा रहे थे ! सामने दोनों ऊपर नीचे वाले एक ही परिवार के लोग थे ! साइड लोअर अंबाला कैंट और साइड अपर वला चक्की ब्रिज ( पठानकोट ) जा रहे थे ! ट्रेन पर बैठते ही सबकी अपनी- अपनी बातें शुरू हो गयीं ! इस छोटे से कम्पार्ट्मन्ट में कुछ क्षणों के लिए हम एक अद्भुत समाज की रचना करने लगते हैं ! हम सब के सब प्रायः फौजी ही थे !
“ हिमगिरि ” ने रफ्तार पकड़ी ! देखते देखते बर्धमान पहुँच गए ! टी 0 टी 0 इ 0 आए और उन्होंने सबकी टिकट चेक की ! पता चला रातों -रात आसनसोल ,जसीडीह और सुबह पटना पहुँच गए ! पटना के बाद हमलोग और लोगों से घुलमिल गए ! कुछ देर के बाद उत्तर प्रदेश के सीमा में हिमगिरी प्रवेश कर गया ! लगभग 4 बजे संध्या समय यह गाड़ी दूसरे दिन लखनऊ पहुँच गयी !
लखनऊ स्टेशन चारबाग में स्थित है ! आज से ठीक 21 साल पहले लखनऊ मेरी कर्म भूमि थी ! अधिकाशतः मैंने अपना समय यही पर बिताया ! परिचित लखनऊ को ट्रेन के भीतर से ही इस भूमि को प्रणाम किया ! दरअसल मुझे सामान की चोरी का भय सताता रहता है ! देखते -देखते हिमगिरि ने रफ्तार पकड़ ली ! बीच -बीच में चाय वाले आते थे ! केट्रीन वाले आके यात्रियों से पूछते थे “ बाबूजी ! रात का खाना ?
मैंने उनसे पूँछा ,” खाना कितने बजे दोगे ?”
“ बस ,बाबू जी! बरेली पहुँचते शाम 7 बजे तक आप को खाना मिल जाएगा !” केट्रीन वाले ने कहा !
गाड़ी में सब के सब ने भोजन किया ! कोई अपनी टिफ़िन लाए थे ! किसी ने खाना खरीदा ! खाना खाने के बाद अपने -अपने बर्थ पर अधिकाश लोग लेट गए ! कई लोग तो जगे भी थे ! गाड़ी में अधिकृत यात्री ही महजूद थे ना ज्यादा थे ना कम थे !
रात को अंबाला स्टेशन से जब गाड़ी रफ्तार पकड़ी ! तो सब सोने के उपक्रम में लग गए ! दो छोटे -छोटे टेबल टेनिस बैट के बैग मैं अपनी सीट पर छोड़ 2 मिनट्स के लिए बाथरूम गया ! लौट कर आता हूँ तो देखता हूँ एक टेबल टेनिस बैट का बैग गायब है ! मेरे तो होश उड़ गये ! अपने बर्थ में ढूंढा ! आजू – बाजू ढूंढा ! सारे सामानों की तलाशी ली ! उस बैग में मेरे पैसे नहीं थे ! उसमें मेरा फॅमिली रेल्वे वॉरन्ट था ! यह फॅमिली लाने के लिए फ्री पास होता है ! समान लाने का भी अलग से रेल्वे वॉरन्ट था ! मेरे बैंक के पास बुक थे ! पोस्ट ऑफिस के खाते भी थे ! पर जो भी था वह मेरे लिए अमूल्य था ! अगल बगल लोगों से पूँछा,–
“ भाई साहिब ! क्या आप लोगों ने मेरा छोटा सा बैग देखा है ?”
“ नहीं ,मैंने तो नहीं देखा “जवाब मिला !
किसी दूसरे ने मुझसे आश्चर्य होकर पूँछा ,
” क्या हुआ ? अभी तो यहाँ कोई नहीं आया था !“
“ कैसा बैग था ? क्या …क्या था ?”
मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा था ! अभी तो गाड़ी रफ्तार में थी ! अंबाला तक तो बैग मेरे साथ था ! उसके बाद तो कोई नहीं उतरा और ना गाड़ी रुकी भी ! अब ये चिंता सताने लगी कि जम्मू से सारे परिवार को लाएंगे कैसे ? घर का समान ट्रेन से लाएंगे कैसे ? ट्रैन्स्फर में सामान बहुत होते हैं ! मेरा मुँह सूखने लगा !
पर मेरा बैग इस कम्पार्ट्मन्ट से बाहर नहीं गया है यह मेरा हृदय कह रहा था !
नींद किसी की खराब हो तो होने दो ! मैंने पैसिज में खड़ा होकर सारे यात्रियों को सम्बोधन किया,———-
“ भाइयों !आप लोगों से प्रार्थना है कि किन्हीं भाईयों को मेरा बैग मिला है तो कृपया मुझे दे दें ! उस बैग में रुपया पैसा नहीं है ! सिर्फ मेरे ऑफिसियल कागज हैं ! फॅमिली वॉरन्ट ,लगेज वॉरन्ट और पासबुक है ! शायद ही किसी को फायदा होगा ! ”
इस तरह की घोषणा करते हुए डब्बे में घूम रहा था ! मेरे अनाउन्स्मेन्ट से कुछ लोग नाराज भी होंगे पर और कोई उपाय नहीं था !
अचानक दो तीन बर्थ को छोड़ किसी ने आवाज लगाई ,–“ यहाँ एक बैग पड़ी हुई है ,देखिए आपका तो नहीं ?”
मैं व्यग्रता से उनके करीब गया तो देखा वही मेरा टेबल टेनिस बैग था ! खुशी का ठिकाना ना रहा ! बैग खोलकर देखा तो सारे के सारे कागजाद सुरक्षित थे ! बस मैंने मन ही मन ईमानदार चोर को शुक्रिया कहा और अपने सफर को जारी रखा !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
28.06.2022.