ईद का चांद
ईद का चांद
मुद्दत हुई दीदार को पिया,
क्यों ईद का चांद बन बैठे।
यह बाहें तेरे प्यार को तरसे,
हम आंखों में अश्क छुपा बैठे।
कभी छलकते पैमाना बन कर,
अब अश्कों की झील बनी।
है दर्द ऐसा दवाए न दवे,
बैठी पत्थर की मूरत बनी।
होश गवांए बैठे हैं हम,
तुम खड़े सरहद पर बलम।
कब होगा दीदार ए यार,
इतना तो बता दे सनम।
गुमसुम सी खामोशी में हम,
छुपाए बहते आंखों से चश्मा को।
भिगोते रहे दुपट्टे के कोने को,
निभाते रहे दुनिया की रस्मो को।
फक्र है मुझे तेरी वतन परस्ती का,
मिल जाए बहाना मुझे दीद का।
जिस्म में मेरे जां आ जाए,
आंखों में नाम न हो नींद का।
इन इंतजार-ए आंखों को,
तेरे जलवों की आस है।
चिराग तो चल रहे हैं,
मगर लौ उदास है।
ललिता कश्यप बिलासपुर हिमाचल प्रदेश