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1 Apr 2024 · 1 min read

इस शहर से अब हम हो गए बेजार ।

इस शहर से अब हम हो गए बेजार ।
बैचेनी और तड़प जैसे लगाए आजार।
टूटा हुआ दिल है अश्कों से भीगा दामन ,
क्या कहें ! नामुराद को भेजते है लानतेँ हजार ।

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Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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