इस बरसात में
मेरे मन की जमींन को महका देना इस बरसात में,
मेरे मन की बंजर जमीं को सींच देना इस बरसात में।
पल्लवित करना कुछ हसीन लम्हें मेरे खातिर सनम,
बूँद -बूँद मेरे मन की तृप्त हो जाये इस बरसात में।
उगाई थी कभी मैंने इश्क की फसल दिल की जमीं पर,
बादलों ने दिया धोखा तो अधूरी ही रही इस बरसात में।
काश की मन का सावन हरा भरा हो जाये फुहारों से,
हौले हौले से पानी से तर कर देना मन इस बरसात में।
मुलाकातों के सिलसिले जो रह गये थे अधूरे हमारे,
रिमझिम फुहारो संग मुलाकात करेंगे इस बरसात मे।
सुनो ना बादल तुम बिन बरसे गये तो अच्छा नहीं होगा,
मेरे घर की चौखट पर बरसना तुम इस बरसात में।।
डा राजमती पोखरना सुराना