इस तरह ऐ जिंदगी तेरे रकीब होते रहे
इस तरह ऐ जिंदगी तेरे रकीब होते रहे
वक़्त गुजरता रहा मौत के करीब होते रहे
कुछ यूँ खुदती रही खाई दरमियाँ इंसानो के
के गरीब ओर गरीब अमीर ओर अमीर होते रहे
इस तरह रखा ख्याल उन्होंने मेरे बाग का
दरख़्त जलते रहे और रफीक सोते रहे
मैं बनाता रहा वो उजाड़ता रहा घरौंदे मेरे
कुछ यूँ रान ऐ दरगाह बदनसीब होते रहे
मैने जब से मुहं देखकर बात कहना छोड़ दी
मेरे अपने दूर होते रहे गैर करीब होते रहे
मारुफ आलम