इस डर को मन से कर बाहर ,तुम शक्तिपुंज रणवीर बनो
इस डर को मन से कर बाहर ,तुम शक्तिपुंज रणवीर बनो
साहस की नौका पर निकलो ,दो पल को अब गम्भीर बनो
मांझी भी खुद और चंपू खुद, तुम खुद धारा खुद तीर बनो
मेधा की इस रण भूमि में , शमशीर उठाकर वीर बनो
हो घटा कृष्ण पथ पर कितनी ,सब घटा चीर तुम नीर बनो
बाधा न जिसको भेद सके , दृढ़ संकल्पित वो प्राचीर बनो
तो धार करो हथियारों मे , और आगे बढ़कर मीर बनो
कर्मों से भाग्य बदल दो निज , तुम खुद ही अपने पीर बनो
इक वाण तो खाली जाता है ,तुम एक नहीं तूणीर बनो
फ़िर जीत तुम्हारी निश्चित है ,विश्वास रखो और धीर बनो
-© सत्येंद्र