इस ज़िंदगानी में
फक़्त चार दिन की इस ज़िंदगानी में ।
फ़ानी क़ायनात मेरी क्या होगी ।
मेरा होकर भी जब कुछ नहीं मेरा ।
जिस्म और रूह भी मेरी क्या होगी ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद
फक़्त चार दिन की इस ज़िंदगानी में ।
फ़ानी क़ायनात मेरी क्या होगी ।
मेरा होकर भी जब कुछ नहीं मेरा ।
जिस्म और रूह भी मेरी क्या होगी ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद