इस कदर छा गए
***इस कदर छा गए***
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वो इस कदर हैं छा गए,
तन-मन भवन में भा गए।
जो तुम मिले साजन हमें,
आँसू ख़ुशी के आ गए।
जीवन हुआ रंगीन सा,
सावन झड़ी तुम ला गए।
सरगम सुनी सुर से भरी,
नग़मे – तराने गा गए।
था यार मनसीरत खड़ा,
झट देखकर शरमा गए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)